नीतीश जी अखबार पढ़ते हैं कि नहीं !

शिवानंद तिवारी

पता नहीं नीतीश जी अखबार पढ़ते हैं या नहीं. अगर पढ़ते हैं तो सिर्फ अपना बयान ही पढ़ते हैं या बाकी खबरों की ओर भी उनकी नजर जाती है. यह सवाल मेरे मन में इसलिए उठा कि अभी मेरे सामने पटना से छपने वाला हिंदुस्तान अखबार है. हिंदुस्तान का दूसरा पन्ना ‘राजकाज’ में पहली खबर नीतीश जी को लेकर है. नीतीश जी ने कल कोरोना को लेकर एक लंबी समीक्षा बैठक की थी. उस बैठक के बाद उन्होंने कहा है कि संक्रमितों के इलाज में ‘कोताही बर्दाश्त नहीं’. हिंदुस्तान ने छ: कॉलम में इसका शिर्षक लगाया है. लेकिन इसी अखबार के चौथे पन्ने पर एक नहीं कई खबरे हैं जो संक्रमितों के हालत का या कहिए कि उनकी बे हालत का बयान कर रही हैं. जैसे ‘बेबसी’ शीर्षक से एक खबर है. बेड के लिए छ: घंटे इंतजार के बाद निराश हो घर पर लगाया ऑक्सीजन. दूसरी खबर है कि दो घंटे एंबुलेंस मेँ बिताने के बाद वार्ड में मिली जगह? तीसरी खबर फुलवारी की है. बगैर ऑक्सीजन एंबुलेंस में तड़पते रहे. चौथी खबर है कि एंबुलेंस में पड़ा रहा मरीज, नहीं हुआ इलाज. पांचवी खबर का शीर्षक है, आपके पास ऑक्सीजन है तो मरीज लाइए, नहीं तो हमारे पास बेड नहीं. छठी खबर, एक कॉलम का शीर्षक है, हेलो.. बेड खाली है पर पर आक्सीजन नहीं है.सातवीं खबर दो कालम की है. शिर्षक है ‘रेमडेसिविर के नाम पर नियमों की धज्जियां उड़ा रहे हैं निजी अस्पताल.’ इसी खबर में एक उपशीर्षक है, ‘बाजार से दवा मंगवाने के पीछे गहरी साजिश.’ अंग्रेजी के हिंदुस्तान टाइम्स अखबार में एक खबर है. इंडियन मेडिकल एसोसिएशन का कहना है कि अगर ऑक्सीजन की सप्लाई नहीं हुई तो 90 प्राइवेट अस्पतालों के बंद हो जाने का खतरा है. एसोसिएशन ने मुख्यमंत्री नीतीश कुमार जी से हस्तक्षेप करने की गुजारिश की है.
यह तो राजधानी पटना के संस्करण के एक पेज, वह भी पटना की खबरों का शिर्षक है. अगर बिहार के अखबारों के जिलों के संस्करण को सामने रखा जाए तो पता चलेगा की संपूर्ण बिहार की लगभग एक ही स्थिति है. मैं समझ नहीं पाता हूं कि मुख्यमंत्री जी अपने पदाधिकारियों के साथ जो लंबी-लंबी समीक्षा बैठक करते हैं उसकी उपलब्धि क्या होती है ! क्योंकि जिन पदाधिकारियों के साथ उनकी समीक्षा बैठक होती है उनमें से कुछ पदाधिकारी तो हर दिन घंटो उनके साथ ही समय व्यतीत करते हैं. क्या यह बेहतर नहीं होता कि बिहार के सभी संस्करणों के अखबारों को सामने रखकर उनमें संक्रमितों के इलाज में होने वाली कमियों, परेशानियों और तकलीफों की खबरों के आधार पर समीक्षा की जाती !!
अगर कोरोना के पहले दौर के समय के बिहार के अखबारों को निकाल कर देखा जाए तो आज जिस तरह की समीक्षा बैठक मुख्यमंत्री जी कर रहे हैं और चेतावनी दे रहे हैं ठीक इसी तरह की समीक्षा बैठक उस समय भी होती थी. उस समय भी मुख्यमंत्री ठीक ठीक काम करने की हिदायत देते थे, और कार्यवाही की बात करते थे. भविष्य में कोरोना के मुकाबले के लिए स्वास्थ्य व्यवस्था मजबूत किया जाएगा, मुख्यमंत्री जी ने उस समय इस आशय की जो घोषणाएं की थीं अगर उन पर अमल हो गया होता तो आज जो भयानक स्थिति दिखाई दे रही है ऐसी भयावहता तो नहीं ही होती. जहां तक मुझे स्मरण है पटना में ऑक्सीजन का प्लांट लगाने की घोषणा मुख्यमंत्री जी ने उस समय की थी. अगर उस घोषणा पर अमल हो गया होता तो ऑक्सीजन के अभाव में आज जिस प्रकार संक्रमित छटपटा रहे हैं,यह स्थिति पैदा नहीं हुई होती.
मुझे याद है जब नीतीश जी के नेतृत्व में पहली सरकार बिहार में बनी थी तो स्वास्थ्य व्यवस्था में अभूतपूर्व बदलाव आया था. चंद्रमोहन राय जी स्वास्थ्य मंत्री थे और के के पाठक नाम के एक पदाधिकारी स्वास्थ्य विभाग में थे जिनका ज़ोरदार रूतबा था. बिहार के दूर दराज़ गांवों में भी निजी क्लीनिक बंद हो गए थे. प्रखंडों के नीचे के अस्पतालों में भी डाक्टर समय पर जा रहे थे. अस्पतालों में दवाएँ मिल रही थीं. फिर पता नहीं नीतीश जी को क्या सुझा. उन्होंने मंत्रिमंडल में फेरबदल कर दिया. अच्छा काम करने वाले स्वास्थ्य मंत्री मंत्रिमंडल से बाहर कर दिए गए.
आज कोरोना की मार से बिहार कराह रहा है. पंद्रह वर्षों से शासन करने वाले मुख्यमंत्री की स्वास्थ्य सेवाओं का ढाँचा कराह रहा है. याद रखने की ज़रूरत है. अख़बारों में रोज़ाना नियम पूर्वक स्तुति गान छपवा कर कोई इतिहास पुरुष नहीं बनता है. क्योंकि इतिहास लिखने वाले अख़बारों में छपने वाले बयानों को अपना आधार नहीं बनाते हैं.

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