राजद प्रवक्ता एजाज़ अहमद की नीतीश कुमार से बड़ी मांग
पटना। राष्ट्रीय जनता दल (राजद) के प्रदेश प्रवक्ता एजाज़ अहमद ने मुख्यमंत्री नीतीश कुमार से अल्पसंख्यक समुदाय को सरकार और संगठन में हिस्सेदारी देने की मांग की है।
बिहार प्रदेश राष्ट्रीय जनता दल के प्रदेश प्रवक्ता एजाज अहमद ने कहा कि भाजपा और आरएसएस के विचार धारा के साथ सत्ता मोह में कुर्सी के लिए सबकुछ गिरवी रखने वाली जदयू से अल्पसंख्यक समाज की भलाई की बातें सोची भी नहीं जा सकती। आज जिस पद पर नीरज कुमार मुख्य प्रवक्ता हैं वहां आठ प्रवक्ता के रहते हुए भी अल्पसंख्यक समाज का प्रतिनिधित्व शून्य है जबकि जदयू के 217 पदाधिकारियों में अल्पसंख्यक समाज के सिर्फ 17 पदाधिकारी हैं। हद तो यह है कि कभी-भी जदयू ने अपने संगठन में अल्पसंख्यक समाज को सम्मानजनक पद नहीं दिया।
राजद नेता एजाज अहमद ने चैलेंज के साथ कहा कि राजद ने हमेशा हर स्तर पर संगठन से लेकर सरकार तक में अल्पसंख्यक समाज को न सिर्फ भागीदारी दी बल्कि उन्हें मान-सम्मान भी दिया। आज पार्टी के राष्ट्रीय प्रधान महासचिव के पद से लेकर पार्टी के युवा प्रदेश अध्यक्ष सहित राजद के चार-चार मुस्लिम प्रवक्ता हैं। संगठन में भी एक बड़ी भागीदारी है। जब राजद की सरकार थी तब दर्जन भर के करीब मंत्री हुआ करते थे। बिहार विधान परिषद में पूर्व मुख्यमंत्री श्रीमती राबड़ी देवी के रहते हुए गुलाम गौस को विधान परिषद में नेता प्रतिपक्ष बनाया गया और सबसे बड़ी बात यह है कि उस समय विधान सभा में भी नेता प्रतिपक्ष अब्दुलबारी सिद्दिकी थे। जहां राजद ने भारतवर्ष में पहली बार अल्पसंख्यकों को उनका हक और अधिकार देने के लिए अल्पसंख्यक कल्याण मंत्रालय का गठन किया। वहीं अल्पसंख्यक आयोग को कानूनी मान्यता देते हुए हर वर्ष इसका रिपोर्ट विधान मंडल के पटल पर रखकर इसको लोगों के बीच स्थापित किया। जबकि जदयू ने 16 वर्षों के शासनकाल में अल्पसंख्यक कल्याण मंत्रालय को उनके अधिकार से वंचित किया और अल्पसंख्यक आयोग को शोभा का वस्तु बना दिया और इसकी रिपोर्ट सदन के पटल पर रखना तो दूर इसे सिर्फ एक कमरे के कार्यालय तक सीमित कर दिया। सच्चर कमिटी की रिपोर्ट के आधार पर जो कार्य राजद शासनकाल में शुरू किया गया था उसे ठंडे बस्ते में 2005 से ही नीतीश कुमार की सरकार ने सर्दखाने में डालने का काम किया। अल्पसंख्यक छात्रों के लिए हर जिला में छात्रावास की स्थापना राजद शासनकाल में की गई। लेकिन उसे राज्य सरकार ने पुलिस बैरक बनाकर अल्पसंख्यक छात्रों के साथ अन्यायपूर्ण व्यवहार किया। जबकि 2005 के बाद नीतीश की सरकार ने जिन जिलों में छात्रावास नहीं बना था वहां जमीन उपलब्ध कराना था लेकिन उसे भी उपलब्ध नहीं कराया। ग्रामीण क्षेत्रों में उर्दू तालीम को समाप्त करने की दिशा में साजिश की गई। वहीं उर्दू शिक्षक की बहाली में लगातार देरी की गई। मैट्रीक स्तर के विषयों में अरबी और फारसी को ऐच्छिक विषय से हटाने का प्रयास हुआ। लेकिन सरकार की इच्छा के बावजूद राजद के दबाव में यह कार्य नहीं हो सका।
एजाज ने आगे कहा कि अल्पसंख्यक समाज के विकास तथा तरक्की के लिए जो पन्द्रह सूत्री कार्यक्रम चलाया जा रहा था उसे नीतीश सरकार ने वर्ष 2009 के बाद गठित ही नहीं किया जिस कारण केन्द्रीय और राज्य योजना में अल्पसंख्यक समाज को पन्द्रह सूत्री कार्यक्रम से जो भागीदारी मिल पाती वह नहीं मिला। अल्पसंख्यक छात्रों को छात्रवृति देने में भी राज्य सरकार की कोई रूची नहीं है जिस कारण प्री-मैट्रीक और पोस्ट मैट्रिक छात्रवृति योजना सहित मेरिट-कम- मीन्स स्काॅलरशिप और कोचिंग स्काॅलरशिप सिर्फ पटना तक ही देखने को मिलता है। राज्य के किसी भी जिला में यह सरजमीन पर दिखाई नहीं देता है। आज बिहार सरकार के मंत्री की नींद खुली और वो केन्द्रीय स्तर पर दबाव बनाकर अल्पसंख्यक छात्रों के छात्रवृति की मांग दिल्ली जाकर कर रहे हैं। मदरसा शिक्षकों के ग्रांट में भी राज्य सरकार की कोई रूची नहीं है और न ही मदरसा और उर्दू शिक्षा को ऊंचा करने का राज्य सरकार की ओर से कोई प्रयास हो रहा है। बल्कि जहां उर्दू टाइपिस्ट और ट्रांसलेटर राजद शासनकाल में बहाल किये गये उन्हें दूसरे कार्यों में लगाकर उर्दू को समाप्त करने के दिशा में एक सुनियोजित साजिश चल रही है। अब तो सरकारी कार्यालयों में उर्दू नेम प्लेट नाम मात्र को ही देखने को मिल रहा है। उर्दू को रोजगार के साथ जोड़ने का कोई प्रयास नहीं हो रहा है। और उर्दू के अखबारों को विज्ञापन देने में भी सरकार की रूची नहीं है क्योंकि इससे उर्दू को बढ़ावा मिलता जो सरकार की मंशा में ही नहीं है।
एजाज ने आगे कहा कि नीतीश कुमार ने बुनकरो को सामाजिक और आर्थिक रूप से मजबूत बनाने का वादा किया था लेकिन इसके विपरित बुनकरों के मान-सम्मान के प्रतीक बुनकर सहयोग समिति बिहार शरीफ के भवन को ही राज्य सरकार ने 8 लाख में नीलाम कर दिया। इस मुख्यालय से पटना और मगध प्रमंडल के 11 जिलों के बुनकरों को फायदा होता था। आज बुनकरों को आर्थिक सहयोग की जगह दयनीय हालात पर छोड़ दिया है जिस कारण भागलपुर, बिहार शरीफ, नवादा, गया, मधुबनी और पटना के सिगोड़ी जैसे इलाकों में बुनकर अपनी हालात पर रोना रो रहे हैं और उनके घर भुखमरी की स्थिति है। राज्य सरकार के लालफीताशाही के कारण एमएसडीपी योजना धरातल पर नहीं है और न ही इसकी राशि खर्च की जा रही है जिस कारण अल्पसंख्यक समाज सड़क, स्कूल, पेयजल, अस्पताल, आईटीआई खोलने के प्रति रूची नहीं रहने के कारण उच्च शिक्षा जैसी मूलभूत समस्याओं से कोसों दूर है और राज्य सरकार की लापरवाही के कारण अल्पसंख्यक बहुल सात जिलों कटिहार, अररिया, पूर्णियां, किशनगंज, दरभंगा, सीतामढ़ी तथा पूर्वी चम्पारण के मुसलमान विकास से कोसो दूर हैं। जहां केन्द्र में एनडीए सरकार के अल्पसंख्यक विरोध की राजनीति में जनता दल यू ने सहयोग करके सीएए, धारा-370, तीन तलाक तथा अल्पसंख्यक समाज के विचारधारा के खिलाफ आने वाले कोई भी कार्यक्रम का समर्थन करके अल्पसंख्यक समाज को मानसिक रूप से प्रताड़ित करने में बराबर का सहयोगी बना हुआ है। वहीं माॅब लींचिंग और साम्प्रदायिक शक्तियों के फलने-फुलने में भी इनका बड़ा योगदान रहा। पदाधिकारियों के ट्रांसफर-पोस्टिंग में भी भेदभाव होती रही। जहां राजद ने हर थाना में उर्दू जानने वाले दारोगा की बहाली की बातें की वहीं एनडीए सरकार ने इसे सर्दखाने में डाल दिया।
एजाज ने जदयू प्रवक्ता से कहा कि अगर वो अल्पसंख्यक समाज के हितैषी होने का दावा करते हैं तो नीतीश कुमार के मंत्रीमंडल में 15 प्रतिशत मंत्री और अपने संगठन में अल्पसंख्यक समाज को आबादी के अनुपात में स्थान दें साथ ही अल्पसंख्यक विकास की योजना को लागू करने वाली संस्थाओं को मजबूती प्रदान करें। अल्पसंख्यक कल्याण मंत्रालय और अल्पसंख्यक आयोग को नीतीश सरकार निर्देशित करे की सच्चर कमिटी की रिपोर्ट के आधार पर अल्पसंख्यक समाज को विकास की धारा से जोड़ने का कार्य करेंगे।