बिहार के कई अधिकारियों पर भ्रष्टाचार के आरोप
बिहार के कई अधिकारियों पर भ्रष्टाचार के गंभीर आरोप लगे हैं। ऐसे में सवाल उठता है कि शासन प्रशासन को भ्रष्टाचारमुक्त कैसे किया जा सकता है?
कफील एकबाल*
भ्रष्टचार सिर्फ बिहार का मसला नहीं है। लेकिन राज्य में जिस तरह नीचे से उपर तक सरकारी कर्मचारियों-पदाधिकारियों के निगरानी विभाग द्वारा रिश्वत लेते हुए पकडे़ जाने, ईडी की छापामारी में करोड़ों की अवैध सम्पत्ति की बरामदगी, भू-माफिया, दारू माफिया बालू माफिया की सक्रियता, आईएएस, आईपीएस अधिकारियों की मनमानी एवं पद के दुरूप्योग की घटनाएं लगातार समाने आ रही हैं वह सुशासन के सरकारी दावे की पोल खोल देने के लिए काफी हैं। इससे यह भी पता चलता है कि सिस्टम में भ्रष्टाचार किस कदर जड़ें जमा चुका है, और यह भी कि इसपर अंकुश लगाने के लिए किए जा रहे प्रयास काफी नही हैं।
अधिकारीयों के भ्रष्टाचार के मामले हालांकि बहुत कम ही सतह पर आ पाते हैं, लेकिन प्रदेश में जो भी मामले सामने आए या आ रहे हैं, उससे यह सवाल उठना भी स्वभाविक है कि भ्रष्टाचार में लिप्त आलाधिकारी अपने कनीय पदाधिकारियों को सूशासन और ईमानदारी का पाठ कैसे पढ़ा पाएंगे ?
बिहार के पूर्व डीजीपी गुप्तेशवर पांडेय जहां दिन रात किसी भी समय मिडियाकर्मियों एवं आम जनता के लिए सहज-सुलभ उपलब्ध रहते थे और कोई भी उनसे कभी भी बात कर सकता था, लेकिन पहली बार शायद एसके सिंघल के रूप में प्रदेश को ऐसे डीजीपी मिले हैं जो आम जनता तो दूर मिडियाकिर्मीयो का फोन भी डायरेक्ट नहीं उठाते हैं। उनके कनीय पदाधिकारी फोन उठाते हैं और कहते हैं कि साहब डायरेक्ट फोन नहीं उठाते हैं और हमें कुछ भी बताने का अधिकार नहीं है यह कह कर फोन काट देते हैं।
बिहार में गया के डीएम रहे अभिषेक कुमार सिंह पर पद के दुरूपयोग, मनमानी एवं भ्रष्टाचार के मामले में विशेष निगरानी इकाई (एसवीसू) ने प्राथमिकी दर्ज की है। अभिषेक सिंह 2006 बैच के आईएएस अधिकारी हैं। उन्होंने जनवरी 2018 से गया में जिलाधिकारी पद पर तकरीबन तीन साल काम किया। आरोपों के अनुसार उनके कार्यकाल के दौरान गया के वन क्षेत्रों में पेड़ों की बड़ी संख्या में अवैध कटाई हुई। इससे सरकार को बडे़ पैमाने पर राजस्व का घाटा हुआ। यह आरोप है कि इन पेड़ों को गया में तैनात वन और जेल विभाग के अज्ञात कर्मियों की मिलीभगत से कटवाया और बेचवा दिया। इस मामले में अभिषेक सिंह के साथ ही वन एवं जेल विभाग के अज्ञात कर्मियों पर भ्रष्टाचार निरोध अधिनियम की विविन्न धाराओं के साथ आईपीसी की धारा 120(बी) के तहत एसवीयू थाना कांड संख्या-7/2022 दर्ज किया गया है।
बिहार के राज्यपाल के प्रधान सचिव रॉबर्ट एल चोंग्थू पर मुकदमा चलाने का आदेश राज्य सरकार ने दिया है। इनके खिलाफ एक पुराने मामले में आरोपों को विधि विभाग ने उपयुक्त पाया है। चोंग्थू 2003 के आसपास जब सहरसा में डीएम थे, तो उस समय वहां के एक व्यक्ति को हथियार का लाइसेंस जारी किया गया था, लेकिन इस लाइसेंसधारी व्यक्ति का कोई सही ट्रेस ही नहीं है, यानी उसका नाम, पता और पहचान कुछ भ सही नहीं था। इन तथ्यों की जांच कराए बिना ही आर्म्स लाइसेंस जारी कर दिया गया था। शिकायत होने के बाद जांच की गई तो मामले की हकीकत सामने सामने आई। उधर मगध रेंज के आईजी अमित लोढ़ा और वहां (गया) के एसएसपी रहे आदित्य कुमार के खिलाफ जांच में आरोपों को सही पाते हुए उनके खिलाफ विभागीय कार्यवाही शुरू कर दी गई है। आईपीएस अधिकारी अमित लोढ़ा एवं आईपीएस अधिकारी आदित्य कुमार पर पद के दुरूप्योग, मनमानी एवं भ्रष्टाचार के आरोप हैं।
गया जिला मगध रेंज के अंतर्गत आता है। आदित्य कुमार एवं आईपीएस अमित लोढ़ा के बीच पद के वर्चस्व को लेकर खींचतान हुई थी। इसमें पुलिसकर्मियों के ट्रांसफर-पोस्टिंग का लम्बा खेल चला था। इन पर बालू माफिया एवं शराब तस्करों के साथ सांठगांठ के भी आरोप लग चूके हैं। 2007 बैच के आईपीएस अधिकारी शफीकुल हक मुंगेर के डीआईजी के खिलाफ बड़े पैमाने पर भ्रष्टाचार के आरोप लगे जिसके बाद उन्हें सस्पेंड कर दिया गया। आरोपों के अनुसार उन्होंने पुलिस पदाधिकारीयों का शोषण किया, उनसे गैरकानूनी तरीके से पैसे बटोरे। इसमें एएसआई इमरान और एक दूसरा शख्स इनकी मदद कर रहा था। इन दोनों के सहयोग से डीआईजी शफीकुल हक ने बड़े पैमाने पर उगाही कर अवैध संपत्ति अर्जित की।
आईपीएस अधिकारीयों ने प्रदेश में किस कदर भ्रष्टाचार की गंगोत्री बहा रखी है, इसकी एक बानगी हम पूर्वी चम्पारण जिले में दो साल एसपी रहे नवीनचन्द्र झा से जुडे़ मामलो को देख सकते हैं। नवीनचन्द्र झा को पटना हाई कोर्ट में दो बार सशरीर उपस्तिथ होना पडा़। वहीं मोतिहारी विधायक तथा गन्ना उद्योग एवं विधि विभाग के मंत्री प्रमोद कुमार ने भू-माफिया-पुलिस गठजोड़ को लेकर मुख्यमंत्री एवं अपनी ही सरकार के आलाधिकारीयों को पत्र लिखा।
इस मामले को गहराई से जानने के लिए हमें इसकी तह में जाना होगा। नवीनचन्द्र झा तकरीबन दो वर्ष तक पूर्वी चम्पारण के एसपी रहे। इनके कार्यकाल में जिला पुलिस पर भू-माफियाओं से सांठगांठ के आरोप लगे थे। मोतिहारी बाईपास के निकट स्थित मुफस्सिल थाना क्षेत्र के राष्ट्रीय राजमार्ग 28 के पास आरसी हीरो एजेन्सी के समीप स्थित पांच कट्ठा जमीन पर भू-माफियाओं द्वारा कब्जा किया जा रहा था। इसकी जानकारी मिलने पर भू-स्वामी जब उसे रोकने और भू-माफियाओं से बातचीत करने पहुंचे तो उनकी जमकर पिटाई कर दी गई। इसके बाद बहुत प्रयास करने पर इससे संबंधित एफआईआर मुफास्सिल थाना में 2019 में भूस्वामी ने भू-माफियाओं के खिलाफ दर्ज तो करा लिया, लेकिन पुलिस ने कोई कार्रवाई नहीं की। पटना हाई कोर्ट के जज जस्टिस संदीप कुमार की अदालत ने इस मुकदमे के अभियुक्तों की अग्रिम जमानत (एन्टीसीपेट्री बेल) की सुनवाई करते हुए पूछा कि ऐसे संगीन मामले में भी अभियुक्तगन अभी तक सलाखों के बाहर कैसे हैं। जबकि किसी भी सक्षम नयायालय द्वारा इन अभियुक्तों के पक्ष में कोई निर्णय या कोई राहत नहीं दी गई है? अदालत ने इस मामले में टिप्पणी करते हुए कहा ऐसा प्रतीत होता है कि अभियुक्तगण स्थानीय गुंडे हैं, जो कमजोर लोगों की जमीन पर पुलिस के सहयोग से व्यवसायिक रूप से कब्जा करने में संलग्न हैं और पुलिस का भू-माफियाओं से गठजोड़ है। एसपी नवीनचन्द्र झा से कहा कि मेरे न्यायालय में उपस्थित होकर विवरण प्रस्तुत करें कि अब तक इस तरह के कितने मामले हुए, कितने मामलों में कार्रवाई हुई और नहीं हुई। हद तो तब हो गई जब मुफस्सिल थाना क्षेत्र के जमला में टाटा मोटर्स के पीछे स्थित एक पत्रकार, उनके माता-पिता एवं भाईयों के नाम से 2007 में गोविन्द प्रसाद से खरीदी गई जमीन जिसका दस्तावेज दाखिल-खारिज, एलपीसी और मालगुजारी की अद्यतन कटाई गई रसीद आदि सबकुछ होने के बावजूद लोकसा निवासी डेढ़ दर्जन से अधिक संज्ञेय मामलों के आरोपित भू-माफिया मुकेश सिंह ने दिसम्बर 2020 में अचानक धावा बोलते हुए कह दिया कि यह इलाका (जमला-लोकसा) मेरा है यहां किसी भी तरह की जमीन पर खेती-बाड़ी, चहारदावारी, मकान आदि का निर्माण मेरी सहमति के बिना किसी ने न कभी कराया है और ना ही करा सकता है। उक्त पत्रकार द्वारा जमीन जोतवाते समय मुकेश सिंह अपने कारिन्दों के साथ पहुंच गया और मारपीट करते हुए चेतावनी दी कि जमीन जोतना है तो बीस लाख रुपये रंगदारी दो नहीं तो जो कीमत मैं तय करूं उसी कीमत पर जमीन लिख दो। उक्त पत्रकार द्वारा एन्ज्यूरी रिपोर्ट (मारपीट की) तथा जमीन से संबंधित सारे कागजात प्रस्तुत करते हुए मुफस्सिल थाना में कांड संख्या-604/2020 दिनांक-24.12.2020 टे 341, 323/379/506/34 आईपीसी दर्ज कराया। मुकेश सिंह, उस कुख्यात मुन्ना सिंह का भाई है, जिसकी मोतिहारी जेल में हत्या कुछ वर्ष पुर्व गैगंवार में कर दी गई। मुन्ना सिंह और मुकेश सिंह मुफस्सिल थाना क्षेत्र के लोकसा निवासी विश्वनाथ सिंह के पुत्र हैं। अपराध जगत की चर्चाओं में पुत्रों की आपराधिक गतिविधियों का सुत्रधार, विश्वनाथ सिंह को ही माना जाता है मुन्ना की हत्या के बाद विश्वनाथ सिंह ने उसके आपराधिक साम्राज्य की कमान मुकेश के हवाले कर दी। बेटों की आपराधिक गतिविधियों में पिता पूरी तरह सक्रिय और सहयोगी हैं। मुफस्सिल थाना कांड संख्या-604/2020 में डेढ़ साल से अधिक बीत जाने के बावजूद भी पुलिस द्वारा कोई कार्रवाई नहीं की गई तो विश्वनाथ सिंह उक्त पत्रकार को औने पौने दाम में जमीन लिख देने के लिए यह कह कर धमका रहे हैं कि तुम पुलिस के पास जाते हो, हम सब को कमीशन देते हैं। जमीन नहीं लिखा और जमीन पर जाने का दुस्साहस किया तो जान से मार देंगे तुम्हें कोई नहीं बचाएगा। उक्त पत्रकार के अनुसार उन्होंने एसपी डॉ कुमार आशीष को भी आवेदन दिया लेकिन कोई कार्रवाई नहीं हुई। डेढ़ साल से अधिक समय तक पुलिस पदाधिकारियों से कार्रवाई की गुहार लगाते-लगाते व्यथित पत्रकार ने मुख्यमंत्री को पत्र लिखकर अपनी पीड़ा से अवगत कराते हुए कहा है कि अब भी अगर कर्रावाई नहीं हुई तो नयायालय की शरण में जाना ही अंतिम रास्ता बचा है। इसी तरह के मामले में कोर्ट द्वारा तलब किए जाने के बाद तत्कालीन आरक्षी अधीक्षक नवीनचन्द्र झा को दो बार कोर्ट में सशरीर उपस्थित होना पड़ा था।
पदाधिकारियों के भ्रष्टाचार पुलिस की इससे बढ़कर मिसाल और क्या होगी कि नीतीश सरकार के गन्ना विकास एवं विधि मंत्री प्रमोद कुमार ने अपने विधान सभा क्षेत्र मोतिहारी में पुलिस-भू-माफिया गठजोंड़ पर विस्तुत विवरण के साथ मुख्यमंत्री एवं अपनी ही सरकार के आलाधिकारियों को कार्रवाई हेतु पत्र लिखा है। जनवरी 2021 में नवीनचन्द्र झा का तबादला होने के बाद डा० कुमार आशीष ने एसपी का पदभार संभाला नवीनचन्द्र झा के कार्यकाल में पूर्वी चम्पारण जिले में तकरीबन ढाई दर्जन भू-माफियाओं के नाम लोगों की जुबा पर थे। आज भी भू-माफियाओं की सक्रियता पुर्वतः कायम होने की चर्चा है, हालांकि उनपर लगाम लगाने की बात एसपी डा० कुमार आशीष लगातार कहते आ रहे हैं, पुलिस को पिपुल-फ्रेंडली बनाने का प्रयास भी कर रहे हैं। एक और घटना जो सिर्फ एक खबर ही नहीं बल्कि एक हयूमेन स्टोरी भी है जिममें हरासिद्धि के आरटीआई कायकर्ता विपिन अग्रवाल की हत्या एसपी नवीनचन्द्र झा के कार्यकाल में गोली मार कर कर इस लिए कर दी गई क्यांकि वे वहां सत्ताधारी सफेदपोशों के द्वारा सरकारी जमीन पर किए गए कब्जे के खिलाफ मुहिम चला रहे थे उनकी हत्या में शामिल शुटर पकडे गए लेकिन साजिशकर्ता सफेदपोश खुलेआम घुमते मुस्कुरा रहे थे जिनहे सजा दिलाने के लिए उनका बड़ा पुत्र रोहित अग्रवाल ने हर सम्भव प्रयास किया लेकिन हर जगह नाकामी मिली 25 मार्च 2022 को उसने इसी संबंध में न्याय की आखिरी उम्मीद के साथ एसपी डा० कुमार आशीष से मिलने का समय मांगा एसपी द्वारा दिये गये समय पर वह पहुचा लेकिन समय देकर भी एसपी उससे नहीं मिले जिससे उपजी हताशा में घर लौट कर उसने आत्महत्या कर ली जिसके बाद यह चर्चा होने लगी कि अगर एसपी उससे मिल लेते तो शायद उसकी जान बच जाती यह है कनीय पुलिस पदाधिकारियों को पिपुल फ्रेंडली बनने का पाढ़ पढ़ाने वाले एक आईएएस अफसर का पिड़ित वर्षीय किशोर के साथ किया जानेवाला रवैया।
सवाल उठना है की आखर प्रतियोगिता परीक्षा इतनी कड़ी प्रतियोगि परीक्षा पास कर जनसरोकार एवं जनसेवा के क्षेत्र में आने वाले आईएएस और आईपीएस पदाधिकारी पथभ्रष्ट कैसे हो जोते हैं ? पटना के चर्चित पत्रकार ईर्शादुल हक कहते हैं अफसरों को समझना होगा वो जिस क्षेत्र में आए हैं वो जनसेवा का क्षेत्र हैं देश में जो कानून बने है उनको सही तरह से इम्प्लीमेन्ट करना उनका काम है और इस पर उनको फोकस करना होगा।
प्रदेश कांग्रेस मेडिकल सेल के उपाध्यक्ष डा० मनीष कुमार कहते हैं ‘भलाई इसी में है कि लोकतंत्र के सभी स्तंभ अपनी-अपनी भूमिका का निर्वाह करते रहें तो शायद इस तरह के टकराव और इस तरह की विकृतियों पर लगाम लगाई जा सकती है बहरहाल जो संकेत उभर रहे हैं वह न तो स्वस्थ लोकतंत्र के लिए अच्छे है और ना ही आमअवाम के लिए।’
*लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं