अदालतों का चिंताजनक रुख!

अदालतों के इस रुख को चिंताजनक कहना अनुचित नहीं है कि पिछड़ों को आरक्षण देने के मामले में कई तरह की शर्तें लगाई जाती हैं.

शिवानन्द तिवारी

पिछड़ों को आरक्षण देने के मामले में उच्च और उच्चतम न्यायालय कई तरह की शर्त लगाता है. लेकिन सामान्य वर्ग के आरक्षण में कोई शर्त नहीं लगाया जाता है. आर्थिक आधार पर सामान्य वर्ग को दिए जाने वाले आरक्षण के मामले में द्रुत गति से सबकुछ तय कर दिया जाता है. यहां तक कि शिक्षा के मामले में नामांकन आदि में आरक्षण की सिफ़ारिश हो जाती है.

देश की बड़ी आबादी एतिहासिक कारणों से सदियों से वंचित रही है. उसको मुख्य धारा में लाने और संविधान द्वारा दिए गए बराबरी के अधिकार के अनुपालन के तहत आरक्षण की व्यवस्था की गई है. उनके सामाजिक और शैक्षणिक पिछड़ापन के अध्ययन के लिए आयोग गठित हुए थे. आयोग की सिफ़ारिशों की संवैधानिकता की उच्चतम न्यायालय की संवैधानिक पीठ द्वारा समीक्षा के उपरांत तरह तरह की सावधानियों की शर्त लगा कर आरक्षण की व्यवस्था लागू की गई है. ऐसी कोई प्रक्रिया सामान्य वर्ग को ग़रीबी के आधार पर आरक्षण देने के मामले नहीं अपनाई गई है.

अभी पिछड़ों और अति पिछड़ों को राजनीतिक रूप से सशक्त करने के उद्देश्य से राज्य सरकारें नगर निकाय के चुनावों में आरक्षण की व्यवस्था कर रही हैं. उसमें न्यायालय द्वारा तरह तरह की पाबंदी लगाई जा रही है. इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने मंगलवार को उत्तर प्रदेश के नगर निकाय के चुनाव की अधिसूचना इसी आधार पर रद्द कर दी है. बिहार के चुनाव पर सुनवाई होने वाली है. इन मामले में न्यायालयों का रूख चिंता जनक है.

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